आर्थिक मोर्चाबंदी

बड़े जनादेश से बढ़ी जवाबदेही  और आर्थिक मोर्चे पर उत्पन्न चुनौतियों से मुकाबले को मोदी सरकार ने कदम बढ़ा दिये हैं। वैसे तो सरकार ने आठ कैबिनेट कमेटियों का गठन किया है, मगर आर्थिक मोर्चे पर तत्काल जूझने के मकसद से सरकार ने पहली बार दो महत्वपूर्ण मंत्रिमंडलीय समितियों का गठन विशेष रूप से किया है।

देश की विकास दर में गिरावट व निवेश में नरमी के अलावा साढ़े चार दशकों में सबसे ज्यादा बेरोजगारी से उपजी चिंताओं के मद्देनजर प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में निवेश एवं आर्थिक वृद्धि पर पांच सदस्यीय समिति बनायी गयी है। वहीं अपने घोषणा पत्र में किये गये वादों व रोजगार की प्राथमिकताओं के मद्देनजर दस सदस्यीय रोजगार एवं कौशल विकास समिति का भी गठन किया गया है। निवेश और विकास समिति में प्रधानमंत्री के अलावा गृहमंत्री अमित शाह, वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण, वाणिज्य एवं रेलवे मंत्री पीयूष गोयल तथा सड़क, परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी को भी शामिल किया गया है। सरकार की प्राथमिकता है कि देश में निवेश को बढ़ावा मिले, मंदी के प्रभाव को कम किया जाये तथा रोजगार के अवसरों में वृद्धि की जाये। भाजपा ने अपने घोषणा पत्र में भी वर्ष 2025 तक देश को पांच लाख करोड़ डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने का लक्ष्य रखा है। साथ ही ढांचागत क्षेत्र में सौ लाख करोड़ रुपये के निवेश लक्ष्य निर्धारित किये हैं। सरकार को भी एहसास है कि देश नई किस्म की आर्थिक चुनौतियों से दो-चार है। सरकार ने पिछले दिनों स्वीकार भी किया कि देश में बेरोजगारी का स्तर पिछले 45 वर्षों में सर्वाधिक है। किसानों की समस्याएं भी अभी कम नहीं हुई हैं। उनकी दोगुनी आय करने का वादा मानसून के स्तर पर कमी रहने से पूरा करना आसान नहीं होगा। फिलहाल सूखे से प्रभावित इलाकों में किसानों की समस्याएं बढऩे की आशंका है।वहीं रिजर्व बैंक द्वारा रेपो रेट में 0.25 फीसदी की कटौती को सरकार की आर्थिक नीतियों का विस्तार माना जा सकता है। फौरी तौर पर इससे होम व ऑटो लोन लेने वाले उपभोक्ताओं को राहत मिलेगी। मगर इसके मूल में ब्याज दरों को कम करके उपभोक्ताओं की क्रय शक्ति बढ़ाना दूरगामी लक्ष्य है ताकि लोगों की क्रय शक्ति बढ़े और इससे बाजार को गति मिले। आरबीआई द्वारा नीतिगत दरों में चौथाई फीसदी की कटौती तीसरी बार की गई है। वर्ष 2019-20 की दूसरी द्विमासिक मौद्रिक नीतिगत समीक्षा में रिजर्व बैंक का रुख लचीला हुआ है। देश के आर्थिक परिदृश्य व मानसून की अनिश्चितता के परिणामों को ध्यान में रखते हुए केंद्रीय बैंक ने जीडीपी की वृद्धि के पूर्वानुमान को 7.20 से घटाकर सात फीसदी किया है। आने वाले समय में खुदरा मुद्रास्फीति में वृद्धि की आशंकाओं के बीच मुद्रास्फीति का पूर्वानुमान अक्तूबर से मार्च के लिये 3.4 से 3.7 फीसदी किया गया है जो इस बात का संकेत है कि निकट भविष्य में मानसून की अनिश्चितता, बेमौसमी तेजी, कच्चे तेल के दामों में उतार-चढ़ाव तथा राजकोषीय परिदृश्य के चलते खाद्य मुद्रास्फीति बढ़ सकती है। वहीं दूसरी ओर केंद्रीय बैंक ने डिजिटल लेनदेन को विस्तार देने लिए की आरटीजीएस और एनईएफटी पर शुल्क समाप्त किया है। केंद्रीय बैंक इस बात पर भी विचार कर रहा है कि क्या बैंकों द्वारा वसूले जाने वाला एटीएम शुल्क समाप्त किया जा सकता है। इस शुल्क की समीक्षा के लिये एक समिति का गठन किया गया है। कहीं न कहीं केंद्रीय बैंक निवेश में गिरावट व निजी खपत में कमी के मामले में सरकार की चिंताओं में शामिल नजर आता है। देश के बदलते आर्थिक परिदृश्य के अवलोकन के बाद मौद्रिक नीति समिति की समीक्षा अगस्त के पहले सप्ताह में सामने आयेगी। बहरहाल, मोदी सरकार अपनी दूसरी पारी में आर्थिक चुनौतियों को हल्के में नहीं लेना चाहती, जिनको लेकर विपक्ष आम चुनावों में खासा हमलावर रहा है।

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